समाज में वरिष्ठजनों की भूमिका

वरिष्ठिजनों की भूमिका समाज हित या परिवार हित में काफी अहम होती है, इसलिए तो कल्प वृक्ष की उपाधि मिलती है। तालाब की शोभा तब है जब उसमें कीचड़ न॑ हो साथ ही कमल के पुष्प भी हो, सभा की शोभा तभी है जब उसमें कठिन-कठोर शब्द न हो साथ ही श्रेष्ठ व कोमल कल्पना अवश्य हो, मन की शोभा तभी है जब उसमें विषय-वासना न हो, साथ ही शुभ व कल्याणकारी विचार अवश्य हो, तभी कल्पवृक्ष से सर्द हवाएं मिलती रहेगी।

हम अपने अन्दर जन्म जन्मांतरो के संस्कार संजोए रहते है, इनमें शुभ अशुभ दोनों प्रकार के संस्कार होते है क्योंकि हम अपने पिछले जन्मों में अच्छे व बुरे दोनों ही प्रकार के अनेकानेक कर्म कर चुके हैं, जिनके संस्कार हमारे सूक्ष्म शरीर में तब तक अंकित और संजीब रहते है जब तक उनका फल हम भोग नहीं लेते ये संस्कार सुप्त' अवस्था में रहते है और हम जब-जब जैसी-जैसी शिक्षा ग्रहण करते है, जैसी संगति व परिस्थिति में होते हैं वैसे ही संस्कार जागृत होते हैं। वाणी में मधुरता अपनों के प्रति निश्चल व्यवहार, माता-पिता के प्रति सेवा भाव, आचरण में पवित्रता, कर्म, परोपकार, ईश्वर के प्रति अन्य भाव, अच्छे गुण हमारे जीवन को सफल व श्रेष्ठ बनाते हैं | वरिष्ठ जन, समाज में परिवार की वो कड़ी हैं जो कम से कम दो पीढ़ियों तक अपना सामंजस्य बनाकर उदाहरण, प्रेरणा बनकर रह सकते है| हम अपने घर के सदस्यों के साथ समानता का जीवन व्यतीत करते तो सुख थ निकटता प्राप्त होगी, और अपने दु्णुणों से मुक्ति मिल सकेगी, वरिष्ठ जन चाहे गुरू हो, मुखिया चाहे परिवार का हो या अपने आस-पास की कोई भी कड़ी हो मै तो कहना चाहूंगी.' . खिलता है जीवन में, फूल भी ऐसा कोई-कोई लेता है जन्म अपना, बन प्रेरणा कोई - कोई वर्तमान में किसी को किसी के लिए समय ही हीं है, ऐसे मं प्रेरणा स्त्रोत कोई मिल जाए तो हमारा भाग्य है। समड़े | जिस तरह मकान में कॉलम के बिना घर निर्माण नहीं हो सकता, इसी तरह वरिष्ठ जन के बिना घर भी, पूरा नहीं कहलाता | हमारे देश के युवा शक्ति में समय को अपने अनुसार बदलने की क्षमता है युवा वर्ग देश को नई दिशा देकर उन्नत राष्ट्र बना सकते है और बना भी रहे हैं, आज युवाओं की संख्या भी अधिक है। उन्होंने भारत को बदलने में भी कामयाबी पाई है पर ये सभी को याद रखना होगा कि आज का युवा भी भविष्य का। वरिष्ठजन है, उत्तावलेपन और अपनी क्षमता का प्रयोग जरा सोच समझकर करें तथा वरिष्ठजनों का वथा सम्मान करें| समाज हो या धर वर्षठिजन की भूमिका सदैव सशकत रही है। वर्तमान भौतिकवादी युग से इस भूमिका को कमजोर करने का प्रयास जरूर किया है लेकिन हर भारतवासी के रण-रा में बसे इस गुण को समाप्त नहीं कर पायेगी |

युवा अवस्था में सभी आजादी पसंद होते है जिस तरह बाल्या अकस्था में मौ-बाप बच्चों को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाते है, रास्ता दिखाते है, भविष्य बनाते है वैसे ही मार्गदर्शन की आवश्यकता बच्चों को चुवाकाल में भी होती है घर के बुजुर्ग परिवार पर आने वाली समस्याओं का उचित समाधान बताते हैं|जीवन का सच्चा रास्ता दिखाते हैं किसी समाज, राज्य या किसी देश को वरिष्ठजन उस समाज, राज्य, देश रूपी शरीर में आंखों का काम करते हैं, वृद्धजन सही रास्ता दिखाते हैं, कुछ युवा आंखों में पट्टी बांध लेते हैं, और रास्ता भटक जाते हैं, उन्हें सही रास्ता वरिष्ठजन रूपी आंखें ही दिखाती हैं। समाज में वरिष्ठजनों की भूमिका न तो कम हो सकती है और न समाप्त। वैसे प्रत्येक युवा का कर्तव्य है कि वरिष्ठजनों की भूमिका को नजर-अंदाज न करें। इसी तरह वरिष्ठजनों को चाहिये कि आज के परिवर्तनशील समाज में होने वाले परिवर्तनों को भी आत्मसात कर एक प्रगतिशील तथा उन्नत समाज के निर्माण में अपना योगदान अवश्य दें।

- कुसुम शर्मा

हमारे मूल्यवान भर्तीकर्ता