ब्रह्म जानाति ब्राह्मण
य़स्क मुनि के अनुसार ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: यानी जो ब्रह्म को जानता है वही ब्राहमण है। ब्राह्मण सनातान धर्म व्यवस्था का एक वर्ण है और कर्म से इस संस्कार को घारण करता है। ब्राह्मण का निर्धारण अब माता-पिता की जाति के आधार पर होने लगा है लेकिन स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को वज्ञोपबीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है, जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेय: संस्करै द्विज उच्चते | विद्याया याति विप्र: श्रोतिरस्त्रिभिरिकच | |अत: आध्यात्मिक दृष्टि से वज्ञोपबीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद के समान ही होता है। मैं समझता हूँ कि इसे प्रकारांतर से समझना होगा | बैदिक व्यवस्था प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है और उसमें वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर बनाई गई थी । यानी व्यक्ति जो काम करता था, उसे उसी वर्ग में रखा जाता था | कहने का आशय यह है कि पढ़ाई-लिखाई, घर्म-आध्यात्म, संस्कार-शिक्षा, नैतिकता-व्यवहार से जुड़े लोगों को ब्राह्मण वर्ण में रखा गया था, उस व्यवस्था को आज से संदर्भ में हम ऐसे समझ सकते हैं कि जो पढ़ाए वो शिक्षक, जो खेल व कौशल की शिक्षा दे बो प्रशिक्षक, जो राष्ट्र की रक्षा करने सीमा पर जाए वो सैनिक आदि... वर्ण व्यवस्था जन्म पर नहीं बल्कि कर्म पर आधारिति थी जो कालांतर में जाति व्यवस्था के रूप में इसलिए बदल गई क्योंकि पिता की विरासत पुत्र या पुत्रों के माध्यम से आगे बढ़ाने की परम्परा स्थापित हो गई |
वास्तव में वैदिक परम्परा लोकतांत्रिक पद्धति पर आधारित थी, जिसमें ज्ञान-विज्ञान की ज्योत प्रज्जजलित करने का अधिकार सभी को था वेदों में 6 प्रकार के ब्राह्मणों का जिक्र है, जिसका संबंध जीवन के ।6 क्षेत्रों या 6 संस्कारों से है| इससे एक बात साफ ज्ञात होती है कि हमारी व्यवस्था कितनी वैज्ञानिक थी 'कि जीवन मे प्रत्येक बदलाव को दिशा देने के लिए एक शिक्षक की व्यवस्था थी | ब्राह्मण इसी कारण अग्रणी 'कहलाए क्योंकि वे पूरी व्यवस्था के ध्वजवाहक थे और बाल अवस्था से लेकर वृद्धावस्था तक प्रत्येक व्यक्ति का संस्कार सुनिश्चित कर उसकी प्रतिभा को निखारने का काम करते थे ताकि वो जीवन के अंत तक राष्ट्र या. समाज के लिए उपयोगी बना रहे |
ब्राह्मणों की इस व्यवस्था को हमें समझने की जरूरत है। आज जात-पात, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर कदुता पैदा करने की जो कोशिश की जा रही है, उसे बैदिक व्यवस्था की बैज्ञानिकता से दूर एक समृद्ध समाज की रचना की जा सकती है।